Microfinance Industry पर मंडरा रहा संकट
कभी गरीबों के लिए वरदान माने जाने वाला Microfinance Sector अब एक बड़े संकट की ओर बढ़ रहा है। हाल ही में एक रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें बताया गया है कि लगभग 68% Subprime Loan लेने वाले Borrowers गंभीर आर्थिक परेशानियों में हैं।
पिछले कुछ सालों में यह सेक्टर 2,100% तक बढ़ा, लेकिन अब तेजी से Default की ओर बढ़ रहा है। सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? क्या भारत भी 2008 की Global Financial Crisis जैसी स्थिति में जा रहा है?
Default का बढ़ता खतरा – आंकड़े चिंताजनक हैं
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2023 के मध्य में 91 से 180 दिनों तक Overdue Loan का प्रतिशत सिर्फ 0.8% था, लेकिन अब यह 3.3% तक पहुंच गया है।
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करीब 27% Borrowers अपने पुराने Loan चुकाने के लिए नए Loan ले रहे हैं।
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कई Borrowers अपने बच्चों की पढ़ाई तक छुड़वाने को मजबूर हो गए हैं ताकि वे कर्ज चुका सकें।
यानी कि छोटे Loans अब Borrowers के लिए बड़े सिरदर्द बनते जा रहे हैं।
Small Loans, Big Problems – Microloan का बढ़ता खतरा
क्या Microloans ही नई Economic Crisis को जन्म दे रहे हैं?
अगर आप 2008 की Global Financial Crisis को याद करें तो वह भी Subprime Lending की वजह से ही आई थी। भारत में भी यही स्थिति बन रही है।
Microloans असल में छोटे, बिना गारंटी वाले Loans होते हैं, जो असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को दिए जाते हैं। भारत में करीब 90% लोग असंगठित सेक्टर में काम करते हैं, जिनके पास स्थायी नौकरी नहीं होती। ऐसे में, उनके लिए बिना सोचे-समझे Loan लेना खतरनाक हो सकता है।
COVID-19 के बाद Microfinance Model में बड़ा बदलाव
पहले Microfinance Companies छोटे समूहों में महिलाओं को Loan देती थीं, जिससे Group Responsibility बनी रहती थी। लेकिन COVID-19 के बाद:
✅ Weekly Meetings बंद हो गईं।
✅ “Social Collateral” यानी Community Pressure खत्म हो गया।
✅ Loan Repayment Discipline धीरे-धीरे कमजोर पड़ गया।
अब Borrowers पर Loan चुकाने का वही दबाव नहीं है, जो पहले हुआ करता था।
Data Gaps and Financial Literacy की कमी
Credit Bureaus के बावजूद Borrowers की सही जानकारी नहीं मिल पा रही
हालांकि Credit Bureaus मौजूद हैं, फिर भी कई Microloans – खासकर Fintech Companies और Gold-linked Loans – Record में नहीं आते। इससे असल Borrowing Trends पर नजर रखना मुश्किल हो जाता है।
पहले, Borrowers के बीच आपसी समझदारी होती थी। अगर कोई जरूरत से ज्यादा Loan लेने की कोशिश करता था, तो पड़ोसी या Community उसे रोकते थे। लेकिन अब Group Liability खत्म हो गई है, और लोग बेहिसाब Loan लेने लगे हैं।
Regulatory Mistakes और Investor Overconfidence
RBI के नए नियमों से आसान हुई Borrowing, लेकिन बढ़ा संकट
2022 में Reserve Bank of India (RBI) ने नए नियम लागू किए, जिससे:
✅ Annual Household Income की सीमा ₹3 लाख कर दी गई।
✅ Interest Rate पर लगे प्रतिबंध हटा दिए गए।
इससे Borrowing तो आसान हो गई, लेकिन लोग कर्ज़ के जाल में फंसते चले गए। खासकर, लोग अब Loan का इस्तेमाल Income Generating Activity के बजाय शादी और Lifestyle खर्चों के लिए करने लगे हैं।
Foreign Investors की उम्मीदें टूट रही हैं
European Funds जैसे Impact Investors को लगा कि भारत का Microfinance Sector एक Safe और Profitable Investment होगा। लेकिन बढ़ते Defaults के कारण अब उनकी उम्मीदें धूमिल हो रही हैं।
अब आगे क्या? – Smart Regulations और बेहतर Monitoring की जरूरत
हर Crisis में एक Opportunity होती है
Experts मानते हैं कि सभी संकटग्रस्त Microfinance Institutions को बचाना जरूरी नहीं है। बल्कि सरकार को उन Borrowers की मदद करनी चाहिए, जो Unmanageable Debt में फंस चुके हैं।
इसके लिए:
📌 Personal Insolvency Mechanism को Microfinance Borrowers के लिए लागू किया जाए।
📌 RBI को Real-Time Data Monitoring करनी होगी ताकि Loan Utilization पर नजर रखी जा सके।
📌 One-Size-Fits-All Regulatory Model छोड़कर ज्यादा Flexible Policies अपनाई जाएं।
क्या Microfinance Model बच पाएगा?
Microfinance कभी Nobel Prize Winner Muhammad Yunus का एक सपना था – गरीबों को वित्तीय आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने का जरिया। लेकिन अगर India इस Legacy को बचाना चाहता है, तो उसे अभी सही कदम उठाने होंगे।
✅ बेहतर Monitoring
✅ Stronger Borrower Protection
✅ System में ज्यादा Accountability
अगर ये कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले समय में हम एक नई Economic Crisis का सामना कर सकते हैं
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